दो दीवारी कमरा- एक ज़िंदगी ये भी

@iamshubham

चेहरे पर झुर्रियाँ, कमज़ोर आँखें जिनसे आस पास की चीजों को देख पाना मुश्किल हो रहा, इतने लंबे जीवन को जी चुकी हैं अम्मा जब पीछे मुड़कर यादों के गलियारे में कुछ खुशी भरे पल को याद करने की कोशिश करती हैं तो यादें भी धूंधली लगती हैं। लगभग 70 से भी ज्यादा वसंत के अनुभव को अपने दिल में समेटे अम्मा ने जब अपनी यादों पर से धूंध की परतों को हटा कर अपनी ज़िदगी के कुछ पन्नों को मेरे सामने खोलाा तो अपने आँसुओं को रोक ना सकीं। 
नाम सीता बाई, जो इंदौर के एक छोटे कस्बे से अपने पति के साथ भोपाल उस दौर में आईं, जब चूनाभट्टी में पत्थरों को तोड़ने के लिए भारी संख्या में मजदूरों की जरूरत आ पड़ी थी। मजदूर तबके के लोगों की स्थिति रोज कुआँ खोद कर पानी पीने वाली होती है । वो भविष्य के बारे में सोच भी नहीं पाते क्योंकि उनके लिए वर्तमान में ही दो जून के रोटी का जुगाड़ करना कठिन होता है और शायद यही कारण रहा कि बहुत जल्दी सीता बाई के परिवार को बेरोजगारी और भूख के थपेड़ों को झेलना पड़ा। आखिर मरता क्या ना करता, लोगों की राय पर उन्होंने अपने पति के साथ चूनाभट्टी से निकल कर भोपाल में ज्योति सिनेमा के पास चाय बेचने का काम शुरू किया और पास में ही एक झुग्गी में रहने लगी। 
समय के साथ साथ सीता बाई के तीन बच्चे हुए। जिम्मेदारी बढ़ी पर स्थिती और बिगड़ गई। शराब के नशे के कारण अचानक पति के निधन से परिवार को बहुत बड़ा धक्का लगा और सब कुछ संभालना मुश्किल होने लगा। अलग-अलग रोगों से एक -एक कर तीनों बच्चों की मौत हुई। जिस झुग्गी में वो रहा करती थीं उसे रेलवे कालोनी में तब्दील कर दिया गया और तब से आज तक उन्हें बेघर और बेसहारा हो कर के जीना पड़ रहा है। 
धीरे-धीरे भोपाल में विकास का दौर शुरू हुआ, विकास के इस आंधी से एक बहुत बड़ा तबका अछूता रहा जिसकी स्थिति आज भी वैसी ही है जैसी आज से 50 साल पहले थी। बड़ी -बड़ी बिल्डींगे खड़ी हुई, अपार्टमेंट बने, शॉपिंग मॉल, फ्लाई ओवर सब बने पर इन बेघरों की टोह लेने वाला कोई फरिश्ता नहीं आया। 
लंबे समय तक दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के बाद आखिरकार बुढ़ापे का डंडा सीता बाई के हाथ में आया। आँखों में उतनी ताकत नहीं रही कि आने वाले कल को अच्छे से देख पाएं, हाथों में वो जोर ना रहा जिससे मुश्किलों को हटाकर राह बनाई जा सके, कमर को भी सीधा टिके रहने के लिए हाथ में थमे लाठी पर निर्भर होना पड़ा और उनका नया आशियाना बना चेतक पुल के नीचे का वो हिस्सा जो एम. पी. नगर के दो ज़ोन को जोड़ता है। 
कमजोर नजरों से टकटकी लगाए वो आते जाते लोगों को देखती रहती, आस-पास की स्थिति ऐसी की गंदे और सड़े हुए चीजों की बदबू में कोई आम इंसान वहां ज्यादा देर तक रूक ना सके। क्योंकि वो मुख्य सड़क है इसलिए दिन में गाड़ियों के शोर-सराबे के बीच नींद का पलकों पर आना भी मुमकिन नहीं हो पाता। खाने के लिए अक्सर कोई ना कोई कुछ दे दिया करता है, एक दूध वाला भी आता है जो एक कटोरे में दूध दे जाता है। ऐसे ही लोगों के भरोसे जीवन कट रही है अम्मा की। 
एक और बात, जब मैंने उनसे पूछा कि, 'अम्मा, क्या मैं आपकी फोटो ले सकता हूँ?' तो वो बड़ी खुश हुई और बोली, 'बड़े दिनों बाद कोई मेरा फोटो खींचेगा, जवानी में मैं भी सुंदर थी। मेरे पति अक्सर मेरी फोटो खींचवाते थें।'
दो दीवारी कमरा- एक ज़िंदगी ये भी दो दीवारी कमरा- एक ज़िंदगी ये भी Reviewed by Kehna Zaroori Hai on 02:36 Rating: 5

6 comments:

  1. Bhai me jab bhopal me tha me janta hu amma ko

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    1. Han bhai...aaj bhi waisi hi hain aur wahi hain..

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  2. Sir..
    can u Plzz inbox me her proper address i Wanna go nd meet her.
    Wanna help what I can..
    Thanks for sharing. Amma's story..

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    1. Aap M.P. Nagar Zone 1 jaiye, waha jyoti cinema ke paas jo chetak bridge hai uske niche ke hisse me amma rahti hain. Wo rasta M.P. Nagar zone 1 aur zone 2 ko jodta hai.

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  3. Really heart touching mai ek esi amma k sath time spend krti thi n jo help hoti thi wo b but nw she is no more y amma ka proper add plz I"ll go there

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    1. Aap M.P. Nagar Zone 1 jaiye, waha jyoti cinema ke paas jo chetak bridge hai uske niche ke hisse me amma rahti hain. Wo rasta M.P. Nagar zone 1 aur zone 2 ko jodta hai.

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