डेंगू का कहर
@iamshubham
जब किसी अपराधिक गतिविधियों की वजह से किसी एक व्यक्ति की जान चली जाती है तो अपराधी के खिलाफ मुकदमा चलता है और उसे मुक्कलम सज़ा मिलती है, पर जब किसी बीमारी से ग्रस्त एक बहुत बड़ा तबका जरुरी चिकित्सा के अभाव में मौत के मुँह में चला जाता है तो इसका दोष किसके सर मढ़ा जाना चाहिए? कुछ दिनों से देश के कई हिस्सों में बनी ऐसी स्थिति से मन में ये सवाल आना लाज़मी है। बरसात ख़त्म होते ही डेंगू और स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियां जिस तहर समाज में अपना पाँव पसारती हैं, यह एक चिंता का विषय है।
अभी तक दिल्ली में डेंगू से हुई 20 से ज्यादा मौतें न सिर्फ लोगों के बीच डेंगू के प्रति कम जागरूकता को प्रदर्शित कर रही हैं बल्कि शासन और प्रशासन के काम काज के ढीले रवैये के ओर भी इंगित कर रही हैं। ऐसे मौसमी बिमारियों के बढ़ते ही अस्पतालों में बिस्तर और दवाओं की किल्लत इस कदर बढ़ जाती है कि बहुत से लोग प्राथमिक उपचार से महरूम रह जाते हैं। 19 वर्ष पहले जब पहली बार दिल्ली डेंगू के चपेट में आई तब भी स्थिति आज से बहुत अलग नहीं थी। तब भी बिस्तरों की कमी थी और आज भी ये दिक्कत है, तब भी मरीज़ों तक दवाइयों की पहुँच नहीं हो पाती थी और आज भी कुछ यही तस्वीर है। 1996 में डेंगू के लिहाज़ से दिल्ली में 1700 इलाकों को संवेदनशील घोषित किया गया था और आज इन इलाकों की गिनती बढ़ कर के 2600 की हो गई हैं। देश की चरमरायी हुई चिकित्सा व्यवस्था को हम जब कुछ विकसित देशों से तुलना करते है तो पूरी की पूरी व्यवस्था ध्वस्त दिखती है। चिकित्सा के क्षेत्र में चीन में प्रति 10,000 की जनसँख्या पर 42 बिस्तर रखे गए हैं और रूस में बिस्तरों की संख्या 93 की हो जाती है, पर भारत में प्रति 10,000 की जनसंख्या पर केवल 9 बिस्तर हैं। अस्पताल में चिकित्सकों को यह कड़ा निर्देश रहता है कि ऐसी बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को आइसोलेटेड वार्ड में रखा जाए जिससे ये बीमारियां ज्यादा लोगों तक न फैले पर इसे तंत्र की लापरवाही ही कहेंगे कि ज्यादातर अस्पतालों से यह सुविधा नदारत है।
डेंगू और स्वाइन फ्लू जैसी बिमारियों का भयावह रूप ज्यादातर विकसशील देशों में देखने को मिलता है। चूँकि विकासशील देशों का बजट चिकित्सा और शिक्षा जैसे मूलभूत क्षेत्रों में जरुरत के मुताबिक नहीं होता है लिहाज़ा इलाज़ और जागरूकता के अभाव में ऐसी बिमारियों की रोक-थाम व्यापक और प्रभावशाली ढंग से नहीं हो पाता है। 2009 से अब तक देश में 992 से ज्यादा लोग डेंगू के कारण मारे गए हैं, वही राज्यों की स्थिति पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इन बिमारियों का प्रकोप महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ज्यादा देखने को मिलता है।
डेंगू पर काबू पाने के लिए क्यूबा ने 1981 से 34 वर्षों में करीब 61 करोड़ 80 लाख रूपये खर्च किए पर भारत में लगता है जैसे आज तक डेंगू को खत्म करने के लिए कोई ठोस कदम कभी उठाया ही नहीं गया। 2013-14 में, दिल्ली में डेंगू पर काबू पाने के लिए राज्य सरकार ने केंद्र से 11.41 करोड़ रुपयों की मांग की पर केंद्र से मात्र 3.56 करोड़ रूपये दिए गए, 2014-15 में 4.54 करोड़ की मांग पर राज्य को 70 लाख दिया गया, जबकि इस वर्ष 2015-16 के बजट में दिल्ली सरकार ने डेंगू उन्मूलन के लिए 4.23 करोड़ की मांग की पर जवाब में मात्र 1.71 करोड़ थमा दिया गया।
इस मामले को ले कर के सरकारी खेमे में भी गंभीरता दिखनी चाहिए। चिकित्सा तंत्र में सुधार और आसपास में साफ़ सफाई के साथ साथ लोगों के बीच जागरूकता फ़ैलाने से ही इन बिमारियों की रोक थाम की जा सकती है।
डेंगू का कहर
Reviewed by Kehna Zaroori Hai
on
05:12
Rating:

No comments: