देश में बुलेट ट्रेन: कहां तक सही
सरकार द्वारा भविष्य में देश के विकास के लिए जिन मुद्दों पर कदम उठाए जाने हैं उस लिस्ट पर हम गौर करें तो पाएँगे कि उनमें से एक प्रमुख मुद्दा देश में बुलेट ट्रेन की शुरुआत भी है। माननीय प्रधानमंत्री जी के हर उस भाषण जिसमें विकास की अवधारणा दी जाती है उसमें बुलेट ट्रेन का मुद्दा हर वक्त अपने 56 इंच का सीना लिए जनता के सामने खड़ा हो जाता है। लोगों को हर वक्त देश में बुलेट ट्रेन का सपना दिखा कर लुभाने का प्रयत्न किया जा रहा है, पर देश मे बुलेट ट्रेन चलाने से देश की जनता किस तरह से प्रभावित होगी उस ज़मीनी हकीकत को भी हमें समझना होगा।
हाल में हुए एक चीन के अर्थशास्त्री के टी.वी. इंटरव्यू मे ये बात सामने आई कि चीन जिसे हम विश्व के विकसित देशों में गिनते हैं, वहां की ज्यादातर मध्यमवर्गीय जनता बुलेट ट्रेन में यात्रा करने से परहेज करती है, कारण- ट्रेन का महंगा किराया।
बड़े बड़े अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ इस बात से हैरान हैं की भारत में बुलेट ट्रेन को क्यों विकास के पैमाने के तौर पर लोगों के सामने परोसा गया है।
दरअसल जो मौजूदा हालात है उसे देखकर हम ये कह सकते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था अपने बुरे दिनों को किसी तरह से बैसाखी के सहारे काट रही है ऐसे में देश को बुलेट ट्रेन का गिफ्ट बैसाखी को और कमज़ोर ही करेगी।
जिस मुम्बई-अहमदाबाद कोरीडोर पर सरकार हाई स्पीड बुलेट चलाने का सपना देख रही है केवल उतने पर बुलेट ट्रेन की पटरीयों को लगाने से लेकर के ट्रेन के चलने तक का खर्चा लगभग 1,40,000 करोड़ रुपये है जो की वर्तमान में हमारे देश के रेल का वार्षिक फायदा है, और इस ट्रेन में यात्रा करने के एक व्यक्ति का अनुमानित किराया 9 रुपये प्रति किलो मीटर होगा जो कि प्लेन के किराए से भी महंगा साबित हो रहा है।
कुल मिला कर के वर्तमान स्थिति में देश बुलेट ट्रेन के लिए तैयार नहीं है अगर सरकार कुछ करना चाहती है तो इतना करे की जो हालत अभी रेलवे की है इसी में कुछ सुधार करे, क्योंकि रेलवे भी भ्रष्टाचार के दीमक से बचा नहीं है पहले इसमें सुधार कर के नागरिकों को रेलवे की मूलभूत सुविधाएँ दे।
देश में बुलेट ट्रेन: कहां तक सही
Reviewed by Kehna Zaroori Hai
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