फैसले के बाद अब ज़मीनी काम की जरुरत

@iamshubham
हाल ही में सरकारी विद्यालयों के गिरते और बदहाल शिक्षा स्तर की बेहतरी के मद्देनज़र इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा सुनाया गया फैसला काफी महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कदम है। सरकारी स्कूलों की मौजूदा खस्ता और जर्जर हालात से पूरा देश वाकिफ़ है। सरकार चाहे कितनी ही वाह वाही लूटने की कोशिश करे, कितने ही योजनाओं की दलील दे ले लेकिन शिक्षा की ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही कहानी बयां करती है।
देश में कुल 13.5 लाख प्राथमिक विद्यालय हैं जिनमे से 10 लाख विद्यालय सरकारी हैं या तो सरकारी मदद से चल रही हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय में अध्यनरत 60% छात्र ऐसे हैं जिन्हें जोड़ और घटाना भी नहीं आता। अंग्रेजी, सामान्य ज्ञान और विज्ञान की शिक्षा के मामले में तो हालात और भी दयनीय है। शिक्षा का अधिकार कानून लागु होने के बाद शिक्षकों और विद्यार्थियों के संख्या में इज़ाफ़ा हुआ। इस कानून के अंतर्गत हर 25 विद्यार्थी पर 1 शिक्षक का प्रावधान है, जबकि यह अनुपात मध्यप्रदेश में 32:1 का है और बिहार में ये आकड़ा घट कर 53:1 का हो जाता है।
इलाहबाद उच्च न्यायलय के इस फैसले से सरकारी स्कूलों के पढ़ाई के स्तर, गुणवक्ता के ग्राफ में सुधार होगा। नेताओं, जजों और प्रशासनिक अधिकारीयों के बच्चे जब सरकारी विद्यालयों की ओर रुख करेंगे तब शिक्षा विभाग और अध्यापकों पर भी बेहतर शिक्षा देने का दबाव रहेगा। इससे सभी तबके के विद्यार्थियों को एक शिक्षा मिलेगी और भविष्य में इनके लिए अवसर भी सामान्य होंगे।
एक तरफ कोर्ट के इस कदम को हर तरफ इतनी सराहना मिल रही है वही जरुरी है की इस निर्णय के दूसरे पहलु पर भी गौर किया जाए। इस निर्णय से संविधान के 21वें अनुच्छेद में उल्लेखनीय निजता के अधिकार का उलंघन होता नज़र आ रहा है। इस अधिकार के अंतर्गत देश के सभी नागरिकों को अधिकार है की वो जिस भी विद्यालय में चाहे अपने बच्चे को पढ़ा सकते हैं। इस फैसले को देश में व्यापक रूप से पारित करने के लिए संविधान के कुछ अंगो में संसोधन करना होगा।
वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के इस होड़ में विद्यार्थी को समय के साथ सामंजस्य बना कर चलना होगा और समय की मांग है की हम सदियों से चली आ रही पारंपरिक शिक्षा पद्दति को छोड़ अब व्यासायिक शिक्षा को अपनाये। आज अंग्रेजी, विज्ञान,समाजिक विज्ञान जैस विषयों में अच्छे ज्ञान की सबसे ज्यादा जारूरत है हमें, जो की अब तक सरकारी विद्यालयों से महरूम ही रहा है। आज तक लोगों की सरकारी विद्यालयों से दुरी का एक कारण ये भी है। पिछले कुछ वर्षों में अंग्रेजी का माहौल इस कदर गरमाया है की विगत 8 वर्षों 274 फीसदी अंग्रेजी विद्यालयों में इज़ाफ़ा हुआ है। अगर ज्यादा से ज्यादा लोगों को सरकारी स्कूलों के तरफ आकर्षित करना है तो ये जरुरी है की सभी सरकारी विद्यालयों में अंग्रेजी, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान समेत सभी विषयों की पढाई पर ध्यान दिया जाए।
फैसले के बाद अब ज़मीनी काम की जरुरत
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