शिक्षा और स्वतंत्रता
@iamshubham
देश के स्वतंत्रता के 68 वर्ष पूरे होने के बावजूद देश जिन मूलभूत समस्याओं के बीच पिस रहा है उनमें से प्रमुख हैं शिक्षा। तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों से विश्व को शिक्षा पद्धति से परिचय कराने वाले देश को आज जरूरत आ पड़ी है कि अपने गिरते हुए शिक्षा स्तर के बारे में चिंतन करे।
सुंदर पिचई, सत्या नडेला, राजीव सूरी, इंदिरा नूई जैसे भारतीय जब विश्व के दिग्गज बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नेतृत्व की बागडोर संभालते हैं तो हर भारतीय गर्व से फूले नहीं समाता, तो वहीं एक ऐसा बचपन भी दिखाई देता है जिसका पेट और पीठ भूख की तड़प से एक हुए जा रह है और वो अपने भूख की आग को शांत करने के लिए फुटपाथ पर तिरंगा बेचने को तो कभी हाथ फैला कर गिडगिडाने को मजबूर है।
2011 के जनगणना के अनुसार देश का शैक्षिक दर 74.04% है, इसमें पुरुषों का 84.14% और महिलाओं का शैक्षिक दर 65.46% है। दोनों लिंगो के दरों में इस भारी अंतर से यह बात स्पष्ट है कि नारी शिक्षा के तमाम योजनाओं के बाद भी लोगों में आज भी जागरूकता की बहुत कमी है जिसके कारण शिक्षा क्षेत्र में महिलाओं की बराबर की भागीदारी नहीं हो पा रही।
केवल केन्द्र सरकार की शिक्षा योजना जैसे सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान समेत 22 महत्वाकांक्षी योजनाओं पर अरबों रुपयों को फूंकनें के बाद भी आलम ये है कि विश्व की सबसे बड़ी निरक्षर जनता की आबादी भारत में बसती है।
शिक्षा की इतनी लचर स्थिति के बावजूद भारत सरकार ने शिक्षा पर बजट को बढ़ाने के जगह इसमें कटौती करना बेहतर समझा। 2015-16 के शिक्षा बजट में 2.02% की कटौती कर स्कूली तथा उच्च शिक्षा के लिए 69,074 करोड़ रुपयों की घोषणा की गई, जबकि 2014-15 के बजट में शिक्षा क्षेत्र में 70,505 करोड़ रुपयों की घोषणा थी।
लगातार शिक्षा स्तर में गिरावट का ही नतीजा है कि जिन आई. आई. टी. समेत कई भारतीय शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों का स्थान विश्व के शीर्ष चुनिंदा संस्थाओं में हुआ करता था वहां आज विश्व के शीर्ष 200 शैक्षिक संस्थानों में एक भी भारतीय शिक्षा संस्था का स्थान नहीं है।
शिक्षा क्षेत्र में सबसे कम बजट के साथ 63% शैक्षिक दर लिए पाकिस्तान के अंदर आंतरिक अशांति और आतंकवाद का कोई मूल कारण है तो वो है नागरिकों के बीच शिक्षा का अभाव। दूसरी तरफ आर्थिक रूप से सशक्त और 100% शैक्षिक दर के साथ नीदरलैंड और फिनलैंड जैसे देशों का उदाहरण हमारे सामने है जिन्होंने अपनी जबरदस्त शिक्षा नीति से अपने पूरे राष्ट्र की काया पलट कर दी।
स्वतंत्रता सभी का मूल अधिकार है और हर व्यक्ति तब तक स्वतंत्र नहीं है जब तक वो अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक नहीं होता और इन सभी चीजों के लिए महत्वपूर्ण है शिक्षा। सरकार को शिक्षा नीतियों में सुधार की जरूरत है। जिस तेजी से देश में किसी भी योजना को पारित किया जाता है अगर उसी तेजी से उन्हें लोगों के बीच लाया जाता, क्रियान्वित किया जाता तो देश की सूरत ही कुछ और होती। जब तक देश का हर व्यक्ति शिक्षित नहीं होता अपने कर्तव्यों के प्रति सजग नहीं होता तब तक स्वतंत्रता की अवधारणा पूरी नहीं होगी।
शिक्षा और स्वतंत्रता
Reviewed by Kehna Zaroori Hai
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