डी.एन.ए. डेटाबेस- क्या तैयार है देश?
@iamshubham
2009 में जब कांग्रेस आधार कार्ड की योजना के साथ संसद पहुँची तो भाजपा ने इस बिल का पुरजोर विरोध किया, पर सत्ता पर काबिज होने के बाद सत्ताधारी पार्टी ने ना सिर्फ आधार को जोरदार प्रचारित किया बल्कि इससे चार कदम आगे बढ़ कर ह्युमन डी.एन.ए. प्रोफाईलिंग बिल- 2015 को संसद में लाने की कवायद में लग गई है। दरअसल सरकार देश के सभी व्यक्तियों का डी.एन.ए. डेटाबेस तैयार करने वाली है।
डी.एन.ए. यानी जैविक फिंगर प्रिंट, शरीर की कोशिका में घुला वह भाग जिससे मनुष्य की सारी जैविक सूचनाओं को हासिल किया जा सकता है।
डी.एन.ए. डेटाबेस की शुरुआत सबसे पहले इंग्लैंड में 1995 में हुई। वहां की सरकार ने इसे आपराधिक गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए शुरू किया था। आज यूरोप के बहुत से विकसित देश अपने अपने नियम और शर्तों पर अपने देश में इस डेटाबेस की नींव जमा चुके हैं। जैसे इंग्लैंड में एक ही अपराध को दुबारा करने पर अपराधी की डी.एन.ए. सूचना डेटाबेस में रख ली जाती है, वहीं स्वीडन में जो अपराधी 2 साल की सजा जेल में काट चुका होता है उसकी जैविक सूचना को डेटाबेस में डाल देने का प्रावधान है। वर्ष 2008 में यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने अपराधियों के अलावा आम लोगों के डी.एन.ए. सैंपल लेने को अवैध करार देकर इस पर रोक लगाई थी। कोर्ट ने कहा- 'लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस प्रकार का कदम गैर-जरूरी है।'
भारत जैसे विकासशील देश जहाँ अभी आधार पर दिए जैविक और व्यक्तिगत सूचनाओं का सुरक्षा बहस का मुद्दा बना हुआ है ऐसे में डी.एन.ए. डेटाबेस को शुरू करना और उसे जरूरी सुरक्षा के परतों से लैस करना, यह बात पच नहीं रही।
प्रस्तावित डेटाबेस राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बनाया जाएगा। डी.एन.ए. सैंपल लेने के लिए प्रयोगशालाओं का गठन, पूरी प्रक्रिया पर नज़र रखने के लिए डी.एन.ए. बोर्ड का गठन और डेटा का दुरुपयोग करने पर 3 साल के कैद व जुर्माना का प्रावधान है। हालाँकि यह योजना कई मायनों में बहुत लाभकारी है, भारतीय अदालतें कई मामलों को सुलझाने के लिए डी.एन.ए. का उपयोग करती रही हैं। लावारिस शवों को पहचानने के लिए भी इस तकनीक की मदद ली जाती है। वहीं कुछ बड़ी चुनौतियाँ भी है जिनका सामना सरकार को आने वाले दिनों में करना पड़ सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में आम नागरिक के मूलभूत अधिकारों में निजता का अधिकार उल्लेखनीय है। प्रस्तावित बिल में मानवाधिकार और निजता उल्लंघन पर पर्याप्त प्रावधान नहीं है, इस बिल से पहले सरकार को निजता का विधेयक लाना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण, सारे सूचनाओं की सुरक्षा के लिए बहुत पुख्ता इंतजाम करना होगा।
2009 में जब कांग्रेस आधार कार्ड की योजना के साथ संसद पहुँची तो भाजपा ने इस बिल का पुरजोर विरोध किया, पर सत्ता पर काबिज होने के बाद सत्ताधारी पार्टी ने ना सिर्फ आधार को जोरदार प्रचारित किया बल्कि इससे चार कदम आगे बढ़ कर ह्युमन डी.एन.ए. प्रोफाईलिंग बिल- 2015 को संसद में लाने की कवायद में लग गई है। दरअसल सरकार देश के सभी व्यक्तियों का डी.एन.ए. डेटाबेस तैयार करने वाली है।
डी.एन.ए. यानी जैविक फिंगर प्रिंट, शरीर की कोशिका में घुला वह भाग जिससे मनुष्य की सारी जैविक सूचनाओं को हासिल किया जा सकता है।
डी.एन.ए. डेटाबेस की शुरुआत सबसे पहले इंग्लैंड में 1995 में हुई। वहां की सरकार ने इसे आपराधिक गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए शुरू किया था। आज यूरोप के बहुत से विकसित देश अपने अपने नियम और शर्तों पर अपने देश में इस डेटाबेस की नींव जमा चुके हैं। जैसे इंग्लैंड में एक ही अपराध को दुबारा करने पर अपराधी की डी.एन.ए. सूचना डेटाबेस में रख ली जाती है, वहीं स्वीडन में जो अपराधी 2 साल की सजा जेल में काट चुका होता है उसकी जैविक सूचना को डेटाबेस में डाल देने का प्रावधान है। वर्ष 2008 में यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने अपराधियों के अलावा आम लोगों के डी.एन.ए. सैंपल लेने को अवैध करार देकर इस पर रोक लगाई थी। कोर्ट ने कहा- 'लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस प्रकार का कदम गैर-जरूरी है।'
भारत जैसे विकासशील देश जहाँ अभी आधार पर दिए जैविक और व्यक्तिगत सूचनाओं का सुरक्षा बहस का मुद्दा बना हुआ है ऐसे में डी.एन.ए. डेटाबेस को शुरू करना और उसे जरूरी सुरक्षा के परतों से लैस करना, यह बात पच नहीं रही।
प्रस्तावित डेटाबेस राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बनाया जाएगा। डी.एन.ए. सैंपल लेने के लिए प्रयोगशालाओं का गठन, पूरी प्रक्रिया पर नज़र रखने के लिए डी.एन.ए. बोर्ड का गठन और डेटा का दुरुपयोग करने पर 3 साल के कैद व जुर्माना का प्रावधान है। हालाँकि यह योजना कई मायनों में बहुत लाभकारी है, भारतीय अदालतें कई मामलों को सुलझाने के लिए डी.एन.ए. का उपयोग करती रही हैं। लावारिस शवों को पहचानने के लिए भी इस तकनीक की मदद ली जाती है। वहीं कुछ बड़ी चुनौतियाँ भी है जिनका सामना सरकार को आने वाले दिनों में करना पड़ सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में आम नागरिक के मूलभूत अधिकारों में निजता का अधिकार उल्लेखनीय है। प्रस्तावित बिल में मानवाधिकार और निजता उल्लंघन पर पर्याप्त प्रावधान नहीं है, इस बिल से पहले सरकार को निजता का विधेयक लाना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण, सारे सूचनाओं की सुरक्षा के लिए बहुत पुख्ता इंतजाम करना होगा।
डी.एन.ए. डेटाबेस- क्या तैयार है देश?
Reviewed by Kehna Zaroori Hai
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