क्षेत्रवाद: कहाँ तक सही
दरअसल इस बात का द्वंद्व मुझे अक्सर देखने को मिलता है, कोई उत्तर प्रदेश बिहार को गंदी और छोटी मानसिकता वाले पिछड़े राज्य के दर्जे में डाल देता है तो अगला इसके प्रति उत्तर में इसकी खुबीयों को गिनाते नहीं थकता, पर पहला अपनी कुशल मानसिकता का प्रमाण देते हुए उत्तर भारत में व्याप्त बुराइयों का हवाला देते हुए एक लंबी लिस्ट सामने रखता है तो अगला फिर से अपने सामान्य ज्ञान की पोटली से कुछ बिंदुओं को अपने चीर विरोधी के सामने परोस देता है। इस द्वंद्व में कोई भी हार मानने को तैयार नहीं होता।
बड़ी विचित्र विडंबना है, जहाँ एक तरफ हम वैश्विक स्तर पर देश को सशक्त, मजबूत और विकसित राष्ट्र के रूप में उभारने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं वही देश के भीतर ऐसे कलह का नज़ारा मिल जाता है।
लोग उत्तर भारत के प्रति ऐसी धारणा मन में गढे हुए हैं जबकि यहाँ का इतिहास काफी समृद्ध रहा है, यहीं वह अयोध्या की पावन भूमि है जहाँ श्री राम जी जैसे पुरुषोत्तम का जन्म हुआ, यही वह भूमि है जहाँ श्री कृष्ण जी गोपीयों संग रास लीला किया करते थें। इसी पावन भूमि पर उपजे पीपल वृक्ष की छाया तले महात्मा बुद्ध जी ने ज्ञान के दीपक से संसार को एक नई राह दिखाई तो वही गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना की। यह भूमि कबीरदास और अमीरखुसरो जैसे महान कवियों की कर्मभूमि में भी शुमार है। आजादी के विद्रोह की पहली आवाज उठाने वाले क्रांतिकारी मंगल पांडे के हुंकार की ताकत में भी इसी मिट्टी की ओज थी तो दूसरी ओर शास्त्रों के ज्ञाता आर्यभट्ट और चाण्क्य जैसे परम ज्ञानीयों की कार्यशाला उत्तर भारत की ये पावन भूमि रही। जहाँ इस भूमि ने देश के नेतृत्व के लिए डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद और लाल बहादुर शास्त्री जी जैसे महान व्यक्तित्वों को जन्म दिया वही मुंशी प्रेमचंद जी और रामधारी सिंह 'दिनकर' जी ने अपनी लेखनी में भी इस मिट्टी की खुशबू को घोल दिया।
राष्ट्र विकास में उत्तर भारत का कितना बड़ा योगदान रहा है इस बात का अंदाजा हम इस उदाहरण से लगा सकते है कि अब तक के १४ प्रधानमंत्रियों के क्रम में से ८ प्रधानमंत्रियों को उत्तर भारत ने दिया, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू जी की जन्मभूमि और कर्म भूमि उत्तर भारत ही रही। १६वें लोकसभा चुनाव में भी माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी को दिल्ली का रास्ता बनारस से ही बनाना पड़ा।
शिक्षा के क्षेत्र में भी उत्तर भारत का महत्वपूर्ण योगदान है, यहाँ IIT AIIMS जैसे विश्वस्तीय संस्थाएँ है जहाँ से हर वर्ष ऐसे विद्यार्थी निकले हैं जिन्होंने पूरे विश्व को अपनी कुशल बुद्धि को लोहा मानवाने पर विवश कर दिया है। यहाँ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय जैसे तमाम विश्वविद्यालय हैं जो ना जाने कितने वर्षों से विद्यार्थियों को विश्व स्तरीय शिक्षा एवं देश को शिक्षित करने की कड़ी में अहम योगदान देते रहे हैं। आज भी देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में यहाँ के सबसे ज्यादा लोगों का चयन होता है।
कुछ लोग यहाँ की तहज़िब पर उँगली उठाते हैं पर संस्कार की उस प्रथा का उपागम भी यही से हुआ है जिसमें हम अपने से छोटो को तुम और बड़ों को आप या राऊर से संबोधित करते हैं, जिससे वाक्य में एक अनोखेें मिठास की अनुभूति होती है।
हमारा देश २९ राज्यों और ७ केन्द्र शासित प्रदेशों का एक संयुक्त परिवार है, देश के सभी राज्यों और उनके हर नागरिकों की भूमिका होती है राष्ट्र के विकास में, तो किसी भी राज्य या नागरिक के प्रति हमे हीनता की भावना नहीं रखनी चाहिए। हम सब एक हैं और सबसे महत्वपूर्ण कि हम सब भारतीय हैं।
क्षेत्रवाद: कहाँ तक सही
Reviewed by Kehna Zaroori Hai
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