हमारी गिरती हुई मानसिकता
@iamshubham
मनुष्य की अनोखी प्रवृत्ति होती है, वह
हमेशा अपनी कमजोरियों को छिपाता है, वह उसे
उजागर नहीं होने देना चाहता और तब वह और
भी ज्यादा संवेदनशील हो जाता है जब
उसकी कमजोरी उसके अपने हों, उसके अपनों से
उसकी बुरी यादें जुड़ी हो।
आज हमारी टीम भोपाल के एक वृद्धाश्रम गई थी। मुझे
यह सोच कर भी अजीब लगता है
कि क्या हमारी मानवीय भावनाएँ इतनी प्रदूषित
हो गई है,इतनी छोटी सोच, इतने गंदे विचार के हो गए हम
की हमारे घर में हमारे माँ बाप के लिए जगह नहीं रही।
जो माता पिता अपना पेट काट कर के हमें पालते हैं,
हमारी खुशियों के लिए कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत
रखते हैं इस उम्मीद में कि बुढ़ापे में हम उसकी लाठी बनेंगे
और दुःख तो तब होता है जब परिणाम में उन्हें सिर्फ
निराशा हाथ लगती है।
आज कुछ बातें उभर कर आईं, वृद्धाश्रम मे हमने कुछ
वृद्धजनों से संवाद स्थापित किया और उनकी बीती हुई
जिंदगी की यादों को टटोल कर कुछ बातों को सामने
लाना चाहा। हमने उनके सामने कुछ सवाल रखे, जैसे आपके
यहाँ आने का कारण क्या रहा? क्या आप खुश हैं यहाँ आ
के? इस तरह के कड़वे सवालों से लगा जैसे हमने उनके पुराने
घाव पर हाथ रख दिया हो, वे थोड़ा असहज से हो गए।
उनमें से कुछ बुद्धिजीवी लोगों ने बड़े लच्छेदार वाक्यों से
हमें प्रभावित करने की कोशिश की। वे नहीं चाहते थे
की हम उनके बुरे दिनों के यादों की आग जो कि उनके
दिल में कहीं सुलग रही थी अपने सवालों के तूफान से
भड़काए।
आज के इस अभिशप्त प्रथा, बढ़ते हुए वृद्धाश्रम को उन
लोगों ने जीवन का तीसरा आश्रम घोषित कर दिया।
उन्होंने इस सच से भी मुँह मोड़ लिया कि आज के मनुष्य
की गिरती हुई मानवीय भावनाओं तथा संकीर्ण सोच
के नतीजे हैं ये बढ़ते हुए वृद्धाश्रम।
कहीं ना कहीं उनके बचाव का यह प्रयास उनके हिसाब से
सही भी था, क्योंकि वो खुद को नहीं बल्कि अपने
बच्चों को बचा रहे थे, जिनकी छोटी सोच और गंदे
मानसिकता के कारण वश उन्हें अपने घरों से दूर अपनों से
दूर, अंजानों के बीच वृद्धाश्रम में रहना पड़ रहा है।
इससे यह भी बात सामने आई है कि उनके परिवार को भले
उसकी चिन्ता ना हो, भले ही उनका परिवार उन्हें खुद
से अलग कर दिया हो पर इन वृद्धजनों के मन में प्रेम
भावना भरी पड़ी है, आज भी उनके दिन की शुरुआत अपने
बच्चों को याद करने के बाद ही होती है, आज भी उन्हें
अपने बच्चों की चिंता है, आज भी उनके मन में अपने
बच्चों के लिए प्यार, स्नेह, समर्पण की भावना जिंदा है।
ऐसे जिंदा दिल लोगों को हमारा सलाम।
मनुष्य की अनोखी प्रवृत्ति होती है, वह
हमेशा अपनी कमजोरियों को छिपाता है, वह उसे
उजागर नहीं होने देना चाहता और तब वह और
भी ज्यादा संवेदनशील हो जाता है जब
उसकी कमजोरी उसके अपने हों, उसके अपनों से
उसकी बुरी यादें जुड़ी हो।
आज हमारी टीम भोपाल के एक वृद्धाश्रम गई थी। मुझे
यह सोच कर भी अजीब लगता है
कि क्या हमारी मानवीय भावनाएँ इतनी प्रदूषित
हो गई है,इतनी छोटी सोच, इतने गंदे विचार के हो गए हम
की हमारे घर में हमारे माँ बाप के लिए जगह नहीं रही।
जो माता पिता अपना पेट काट कर के हमें पालते हैं,
हमारी खुशियों के लिए कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत
रखते हैं इस उम्मीद में कि बुढ़ापे में हम उसकी लाठी बनेंगे
और दुःख तो तब होता है जब परिणाम में उन्हें सिर्फ
निराशा हाथ लगती है।
आज कुछ बातें उभर कर आईं, वृद्धाश्रम मे हमने कुछ
वृद्धजनों से संवाद स्थापित किया और उनकी बीती हुई
जिंदगी की यादों को टटोल कर कुछ बातों को सामने
लाना चाहा। हमने उनके सामने कुछ सवाल रखे, जैसे आपके
यहाँ आने का कारण क्या रहा? क्या आप खुश हैं यहाँ आ
के? इस तरह के कड़वे सवालों से लगा जैसे हमने उनके पुराने
घाव पर हाथ रख दिया हो, वे थोड़ा असहज से हो गए।
उनमें से कुछ बुद्धिजीवी लोगों ने बड़े लच्छेदार वाक्यों से
हमें प्रभावित करने की कोशिश की। वे नहीं चाहते थे
की हम उनके बुरे दिनों के यादों की आग जो कि उनके
दिल में कहीं सुलग रही थी अपने सवालों के तूफान से
भड़काए।
आज के इस अभिशप्त प्रथा, बढ़ते हुए वृद्धाश्रम को उन
लोगों ने जीवन का तीसरा आश्रम घोषित कर दिया।
उन्होंने इस सच से भी मुँह मोड़ लिया कि आज के मनुष्य
की गिरती हुई मानवीय भावनाओं तथा संकीर्ण सोच
के नतीजे हैं ये बढ़ते हुए वृद्धाश्रम।
कहीं ना कहीं उनके बचाव का यह प्रयास उनके हिसाब से
सही भी था, क्योंकि वो खुद को नहीं बल्कि अपने
बच्चों को बचा रहे थे, जिनकी छोटी सोच और गंदे
मानसिकता के कारण वश उन्हें अपने घरों से दूर अपनों से
दूर, अंजानों के बीच वृद्धाश्रम में रहना पड़ रहा है।
इससे यह भी बात सामने आई है कि उनके परिवार को भले
उसकी चिन्ता ना हो, भले ही उनका परिवार उन्हें खुद
से अलग कर दिया हो पर इन वृद्धजनों के मन में प्रेम
भावना भरी पड़ी है, आज भी उनके दिन की शुरुआत अपने
बच्चों को याद करने के बाद ही होती है, आज भी उन्हें
अपने बच्चों की चिंता है, आज भी उनके मन में अपने
बच्चों के लिए प्यार, स्नेह, समर्पण की भावना जिंदा है।
ऐसे जिंदा दिल लोगों को हमारा सलाम।
हमारी गिरती हुई मानसिकता
Reviewed by Kehna Zaroori Hai
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