धर्म, कट्टरता और असहिष्णुता
28 सितंबर, यानी दादरी कांड के बाद से संचार एवं संप्रेषण के माध्यमो पर, जैसे टी.वी., अखबारों, सोशल नेटवर्कों के साथ साथ मानवी मष्तिष्क पटल पर सहिष्णुता और असहिष्णुता शब्दों की आवृति जिस तेज़ी से हुई है वह अभूतपूर्व है। असहिष्णुता के खिलाफ साहित्यकारों और वैज्ञानिकों का पुरस्कार वापसी अभियान का होना, पुरस्कार वापसी अभियान के खिलाफ अनुपम खेर के नेतृत्व में राजपथ पर निकाला गया विरोध मार्च। समय समय पर बड़ी बड़ी हस्तियों द्वारा दिए गए बयानों ने इस विषय पर आमजन की भागिदारी को बढ़ा दिया है।
असहिष्णुता के मुद्दे पर देश दो भागों में बंट चूका है। कोई भी अपनी विचार के साथ समझौता करने को राज़ी नहीं है। सोशल नेटवर्कों पर तो आलम ये है कि विरोध होने पर बात असभ्य और अमर्यादित शब्दों तक पहुँच जा रही।
पहले शाहरुख़ खान और अब आमिर खान द्वारा असहिष्णुता पर दिए गए बयान ने इस पुरे मामले को और ज्यादा गरमा दिया है। इस माहौल, बहस, तर्कों और कुतर्कों के बीच यह समझना ज़रूरी हो जाता है कि, क्या वाकई देश की फ़िज़ा में सौहार्द से ज्यादा धार्मिक कट्टरता और उन्माद की जड़े पोषित हो रही हैं? इस देश में कौन रहेगा, क्या खाएगा, इन सारी बातों को कुछ खास लोग तय करेंगे?
देश तो नहीं पर देश की कुछ आबादी ज़रूर असहिष्णु हुई है।असहिष्णुता किसी भी धर्म के प्रति कट्टरता और अंधभक्ति का परिणाम होता है और इसका उदहारण समय समय पर विश्व और देश के हिस्सों में अक्सर देखने को मिल जाते हैं।
हिंदुस्तान इतनी धार्मिक विविधताओं के बाद भी अपने सौहार्द और भाईचारे के वजह से विश्व पटल पर अपनी खास चमक बनाए हुए है। पछले कुछ दिनों से जिस तरह की चिंता और भय का जन्म लोगों के मन में हुआ ही वह वाकई गंभीर विषय है।
जिस तरह से लोगों के विरोध पर उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं, देश से भाग जाने को कहा जा रहा है, वो पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों की याद दिलाता है, जहाँ धार्मिक कट्टरता सैकड़ों को मौत गर्त में धकेल देती है। कुछ महीने पहले बांग्लादेश में धार्मिक रूप से स्वतंत्र सोच रखने वाले कुछ ब्लॉगर अपने नास्तिक विचारधारा के वजह से इस्लामिक कट्टरपंथ के शिकार हुए। वहां माहौल इस कदर खराब हुआ कि कई लेखक और धार्मिक रूप से स्वतंत्र सोच रखने वाले लोग दूसरे देशों में पलायन कर गए।
कुछ खास लोगों द्वारा देश की आबो हवा को ख़राब करने की कोशिश की जा रही है। इस बात में कोई दोमत नहीं कि इन लोगों में कट्टरता का विकास हुआ है जिसके कारण इन लोगों से वाद-विवाद, तर्क-वितर्क और संवाद की प्रवृति नष्ट हो गई है। वो सिर्फ और सिर्फ अपने विरोधी खेमे को परास्त करना चाहते हैं, उसके लिए अगर हिंसा का सहारा भी लेना हो तो उनके नज़र में वो भी जायज़ है। असहिष्णुता का नतीजा है कि कई सालों पहले मोहम्मद अज़हरुद्दी को इसलिए जान से मारने की धमकी दी गई क्योंकि, उन्होंने किसी चप्पल के विज्ञापन के लिए उस पर अपना ऑटोग्राफ़ दे दिया था, जो की इस्लामिक संगठनो को मंज़ूर नहीं था, क्योंकि उनके हस्ताक्षर में मोहम्मद शब्द था। कुछ ऐसा ही वाकया ए.आर. रेहमान के साथ हुआ, उन पर फतवा जारी किया गया क्योंकि उन्होंने मोहम्मद साहब के जीवन पर बन रही फ़िल्म में संगीत देने के लिए हामी दी थी। एम. एम. कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर, गोविन्द पनेसर को भी अपने धार्मिक रूप से स्वतंत्र और नास्तिक विचार रखने के कारण मौत नसीब हुई। एक वक़्त था जब वैचारिक और मान्यताओं से धूर विरोधी भी अपने विचार को स्पष्ट करने के लिए संवाद, तर्क- वितर्क करते थे। जब महात्मा गांधी ने कहा कि 'ईश्वर सत्य है' तो गोरा (गोपाराजू रामचंद्र राव) ने प्रतिवाद किया और उनसे जानना चाहा कि उनकी योजना में नास्तिक के लिए क्या जगह है। गोरा ने जानना चाहा कि जो व्यक्ति ईश्वर को नहीं मानता वो सत्य को कैसे मानेगा। गोरा का सत्य में विश्वास था मगर ईश्वर में नहीं। नवंबर 1944 में गोरा के साथ चली लंबी बहस के बाद गांधीजी ने इसे उलट दिया, सत्य ईश्वर है।' जो सही अर्थ में आस्तिक है वो कभी नास्तिक से नफरत नहीं करता।
कट्टरता से कभी किसी भी विचार का भला नहीं हुआ है, धार्मिक कट्टरता के बीज से पैदा हुए इस्लामिक स्टेट, बोको हरम जैसी सैकड़ों आतंकी संगठनों का मात्र एक उद्देश्य है- उनके सोच, उनकी धारणाओं का विस्तार, पर क्या यह तरीका कही से तर्कसंगत है?
देश में पैदा हुए माहौल की रोक थाम बहुत ज़रूरी है। इसके लिए सरकारी महकमें को गंभीर हो कर इस पर काबू पाने का प्रयास शुरू कर देना चाहिए। देश की छवि आमिर खान के बयान से नहीं हो रही, बल्कि आमिर के विरोधियों के विरोध के तरीके, उनके सुर, शब्दों से हो रही।
धर्म, कट्टरता और असहिष्णुता
Reviewed by Kehna Zaroori Hai
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